26 November, 2008

लिख्नना बहुत कुछ चाह्ती हूं मगर लिख्नना नहीं आता नएएसीख रही हू ध्न्याबाद आपने मुझे एक नयी दुनियाँ से परीचित करवाया

कविता (जिन्दगी)
खिलते फूल सी मुसकान है जिन्दगी
समझो तो बरी आसान है जिन्दगी
खुशी से जिएं तो सदा बहार है जिन्दगी
दुख मे तलवार की धार है जिन्दगी
पतझर बसन्तो का सिलसिला है जिन्दगी
कभी इनायतें  तो कभी गिला है जिन्दगी
कभी हसीना की चाल सी मटकती है जिन्दगी
कभी सूखे पते सी भटकती है जिन्दगी
आगे बदने वालों के लिये पैगाम है जिन्दगी
भटकने वालों  की मैयखाने मे गुमनाम है जिन्दगी
निराशा मे जी का जन्जाल है जिन्दगी
आशा मे सन्गीत सी सुरताल है
कहीं  मखमली बिस्तर पर सोती है जिन्दगी
कहीं फुटपाथ पर पडी रोती है जिन्दगी
कभी होती थी दिलबरे यार जिन्दगी
आज चौराहे पे खडी है शरमसार जिन्दगी
सदिओं से मा के दूध की पह्चान है जिन्दगी
उसी औरत की अस्मत पर बेईमान है जिन्दगी
वरदानो मे दाऩ क्षमादान है जिन्दगी
बदले की आग मे शमशान है जिन्दगी
खुशी से जीओ चन्द दिन की मेहमान है जिन्दगी
इबादत करो इसकी भगवान है जिन्दगी

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