09 January, 2009


श्रम-मार्ग


जीवन को संघर्श मान जो चल पडते हैं बाँध कफन,
नहीं डोलतेहार जीत से,नहीं देखते शीत तपन.
न डरते कठिनाईयों से न दुश्मन से घबराते हैं,
वही पाते हैं मंजिल देश का गौरव बन जाते हैं
नन्हीं जलधारा जब अदम्य् साहस दिखलाती है,
चीर पर्वत की छाती वो अपनी राह बनाती है,
बहती धारा डर से रुक जाती तो दुर्गंध फैलाती,
पीने को न जल मिलता कितने रोग फैलाती
नन्हें बीज ने भेदी मिट्टी अपना पाँव जमाया,
पेड बना वो हरा भरा फल फूलों से लहराया.
न करता संघर्ष बीज तो मिट्टी मे मिट्टी बन जाता
कहाँ से मिलता अन्न शाक पर्यावर्ण कौन बचाता.
कुन्दन बनता सोना जब भट्ठी मे तपाया जाता है,
चमक दिखाता हीरा जब पत्थर से घिसाया जाता है,
श्रम मार्ग के पथिक बनो, अवरोधों से जा टकराओ,
मंजिल पर पहुंचोगे अवश्य बस रुको नहीं बढ्ते जाओ

08 January, 2009

जिन्दगी आदमी से सवाल करने लगी है
नये दौर पे मलाल करने लगी है
खो गयी वो हंसी खो गयी चाहतें
रोजी रोटी बेहाल करने लगी है
चलने लगी हवस की आन्धियां
बेटी डर बाप से फिलहाल करने लगी है
घर में बंट गये बेटों के कमरे
मैं किसके हिस्से मे हूं
मां सवाल करने लगी है
जिन्दा इन्सान को मुर्दा साबित कर दे
ये रिश्वत क्माल करने लगी है
दौलत की भूख से परेशान दुनिआ
आदमी के गुर्दे हलाल करने लगी है
कौन किस से किस की शिकायत करे
जिन्दगी खुद पर मलाल करने लगी है

कविता


उसके अहं में छिपा विष
उसकी मैं
तू की अवहेलना
शोषण की बुभुक्शा
कामुक्ता कि लिप्सा
अभिमान की पिपासा
कर देती है आहत
तर्पिणी का अनुराग,
सहनशीलता,सहिश्णुता,त्याग
पंखनुचा की आहों से
सिसकता है
घर की दिवारों का
हर कण
क्योंकी
उन दिवारों ने
घुटते देखा है
उस आम औरत को
उस नाम की अर्धांगिनी को
जिसकी पहचान होती है
"बेवकूफ गंवार औरत,
तुझे अकल कब आयेगी "
हाँ सच है
उसे अभी अकल नही आयी
और सदियों से सहेजे खडी है
इस घर की चारदिवारी को
पर
जब कभी
अतुष्टी का भावोद्रेक
अत्याचार की अतिमा
हर लेगी
उसकी सहनशीलता
जगा देगी उस के
स्वाभिमान को
तो वो मीरा की तरह
इस विश को
अमृ्त नहीं बना पायेगी
सतयुग की सीता की तरह
धरती मे नहीं समायेगी
ये कलयुग है
क्या नहीं सुन रहा
दंडपाशक का अनुनाद
तडिताका निनाद
बनादेगी तुझे निरंश,पंगल
कर देगी सृ्ष्टी का विनाश
उस प्रलय से पहले
सहेज ले
घर की दिवारों को
अपना उसे
अर्धनारीश्वर की तरह
समझ उसे अर्धांगिनी !!

07 January, 2009


अखिर क्यों
विस्फोटों की भरमार क्यों है
दुविधा में सरकार क्यों है
आतंकी धडल्ले से आते हैं
सोये पहरेदार क्यो है
सबूतों को झुठलाये पाक
दुश्मन झूठा मक्कार क्यों है
दुश्मन तेरी मानेगा क्या
ऐसा तेरा इतबार क्यों है
जो अपना दोशी ना पकड सका
उस अमरीका से गुहार क्यों है
शेर की माँद के आगे
गीदड की हुंकार क्यों है
अपने दम पर भरोसा कर
फैसले का इन्तजार क्यों है
शराफत से ना मने दुश्मन
चुप तेरी तलवार क्यों है
जो करना है जल्दी करो
आपस में तकरार क्यों है
भारतवासियो जागो अब
बेहोश बरखुरदार क्यों है

06 January, 2009


भगत सिंह का क्षौभ
आँखोंसे बहती अश्रुधारा को केसे रोकूं
आत्मा से उठती़ क्षौभः कीज्वाला को केसे रोकू
खून के बदले मिली आजादी की
क्यों दुरगति बना डाली है
हर शहीद की आत्मा रोती है
हर जन की नजर सवाली है
क्या होगा मेरे देश का कौन इसे बचाएगा
इन भ्रष्टाचारी नेताओं परं अंकुश कौन लगायेगा
दुख होता है जब मेरी प्रतिमा का
इन से आवरण उठवाते हो
क्यों मेरी कुर्बानी का इन से
मजाक उडवाते हो
पूछो उन से क्या कभी
देश से प्यार किया है
क्या अपने बच्चों को
राष्ट्र्प्रेम का सँस्कार दिया है
या बस नोटों बोटों का ही व्यापार किया है
देख शासकों के रंग ढ्ग
टूटे सपने काँच सरीखे
कौन बचायेगा मेरे देश को
देषद्रोहियों के वार हैं तीखे
मेरे प्यारे देशवासियो
अब और ना समय बरबाद करो
देश को केसे बचाना है
इस पर सोव विचार करो
मुझ याचक क हृ्द्योदगार
जन जन तक् पहुँचाओ
इस देश के बच्चे बच्चे को
देषप्रेम का पाठ पढाओ
सच मानो जब हर घर में
इक भगतसिंह हो जायेग
विश्व गुरू कहलायेगा
चाह्ते हो मेरा कर्ज चुकाना
तो कलम को शमशीर बनाओ
चीर दे सीना सब का
सोये हुये जमीर जगाओ
लिखकर एक अमरगीत
इन्कलाब की ज्वाला जलाओ

04 January, 2009


कविता


पूर्व पर पश्चिम का लिबास
कैसा विरोधाभास ?
श्रद्धा हो गयी लुप्त
रह गया केवल् श्राद्ध
आभार पर हो गया
अधिकार का हक
सम्मान पर छा गया
अभिमान नाहक्
रह गया सिर्फ
मतलव का साथ
कैसा विरोधाभास
चेतना मे है सिर्फ स्वार्थ
भूल गये सब परमार्थ
रह गये रिश्ते धन दौलत तक
मैं हडप लूँ उसका हक
प्रेम प्यार सब कल की बातें
आदर्शों का हो गया ह्रास
केसा विरोधभास
पूर्व पश्चिम जब एक हो गये
ना रही शार्म ना रहा लिबास
ना रही मर्यादा
न रिश्तों का एहसास
वेद उपनिश्द सब धूल गये
रह गया बाबाओं का जाल
ओ नासमझो
उस सभ्यता को क्यों अपनायें
जो कर दे पथ से विचलित
इसके दुश्परिणाम से
तुम क्यों नहीं परिचित
रह्ने दो पूरब पर पूरब का लिबास
जिसमे भारत की संस्कृ्ति की है सुबास

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