31 January, 2009


रिश्ते


ये रिश्ते
अजीब रिश्ते
कभी आग
तो कभी
ठंडी बर्फ्
नहीं रह्ते
एक से सदा
बदलते हैं ऐसे
जैसे मौसम के पहर
उगते हैं
सुहाने लगते हैं
वैसाख के सूरज् की
लौ फूट्ने से
पहले पहर जैसे
बढते हैं
भागते हैं
जेठ आशाढ की
चिलचिलाती धूप की
साँसों जैसे
फिर
पड जाती हैं दरारें
मेघों जैसे
कडकते बरसते
और बह जाते हैं
बरसाती नदी नालों जैसे
रह जाती हैं बस यादें
पौष माघ की सर्द रातों मे
दुबकी सी सिकुडी सी
मिटी कि पर्त् जैसी
चलता रहता है
रिश्तों का ये सफर् !!


29 January, 2009


वक्त रुक गया है ये किस मुकाम पे
जिन्दगी घिर गयी है किस तुफान से

देख सलीका अपनों का खामोश हो गये
संभलने की सोची तो गुम होश हो गये
विश्वास उठ गया है धरमो-ईमान से
जिन्दगी घिर गयी है------------------------------
ना देते जख्म तो ना चाहे बात पूछते
ना लेते खबर मेरी न जज़बात पूछ्ते
हम भी न गुजरते इस इम्तिहान से
जिन्दगी घिर गयी-----------------------------------
ना था गुमा कि दिल को यूँ लगेगी चोट
अपनों के मन मे भी आ जायेगा यूँ खोट
दँग रह गये हैँ हम रिश्तों के इनाम से
जिन्दगी घिर गयी है -------------------------------

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