11 April, 2009

गज़ल्


ज़िन्दगी ये कैसा दगा दिया तुम ने
आदमी से आदमी ज़ुदा किया तुमने

चौपालो की रोनक छर्खों की गुंजन
नये दौर मे सब कुछ भुला दिया तुमने

सावन के झूले वो पनघट की सखियां
जीने की अदा को मिटा दिया तुमने

सजना की चिठी वो प्यारा कबूतर
भूला सा अफसाना बना दिया तुमने

तुम्हें थामने को जब भी उठा आदमी
पिलाया जाम और सुला दिया तुमने

कौन किस से किस की शिकायत करे
हर रिश्ते मे जहर मिला दिया तुमने

जीने का सलीका खुद को नहीं आया
फिर भी दूसरों से गिला किया तुमने


07 April, 2009


गज़ल्


वफा सब को रास आये ये जरूरी तो नहीं
मुकद्दर सब पे मुस्काये ये ज़रूरी तो नहीं

कितने अफसाने उनके कितने दिवाने उनके
फिर भी वो तेरे दर पे आये ये जरूरी तो नहीं

वो हसीन पलों की यादें बहुत हैं जीने के लिये
वो पल फिर जीते जी आयें ये ज़रूरी तो नहीं

मेरे लिये कुछ भी नहीं अहम उनके सिवा
ये एहसास उन्हें भी आये ये जरूरी तो नहीं

उल्फत यही है कि उनकी राहें आज़ाद कर
वो तेरेही दामन से बंध जाये ये जरूरी तो

दिल क्यों लगाता है किसी की शोखियों पर पहरे
वो तेरे ही गीत गाये ये जरूरी तो नहीं

शिकवा ना कर वफा यूँ ही निभाये जा
ज़फा उनको भी रास आये ये जरूरी तो नहीं

सब्र कर वक्त की गुज़ारिश है यही
तू उनको ना याद आये ये जरूरी तो नही

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