04 May, 2010

पनी बात

अपनी बात
 आज कुछ समय मिला है। सोचा ब्लाग पर हाजरी लगा लूँ। भारत की बहुत याद आ रही है सच कहूँ अपने देश जैसा सुख कहीं नही है न ही अपने देश जैसी आजादी। विदेश मे तो हर काम को अपनी सीमा मे करना होता है ।सुबह से शाम तक जितने भी व्यक्तिगत काम से ले कर आफिस तक सब की सीमायें बाँध रखी हैं अब देखिये सुबह नित्यक्र्म से निव्रित होने से नहाने तक का समय मुझे अपने  लिये तो अभिशाप सा लगता है। मर्जी से अपने शरीर की सफाई भी नही कर सकते। एक कविन्टल शरीर पर फवारा चार बारिश की बून्दों जैसा आभास देता है। वहाँ अपने घर मे बडी सी बाल्टी और एक बडा सा लोटा जितने मर्जी भर भर के लोटे शरीर  पर डालो पता चलता था कि हम नहा कर आये हैं और अमेरिका मे एक तरफ से फवारे से नहा कर हटो तब तक दूसरी साईड सूख जाती है। बाथ टब मे बैठ कर नहा तो सकते हैं मगर वो इतना छोटा लगता है कि मेरा तो दम घुटने लगता है। उसके बाद किचन मे आओ तो बिजली के हीटर हैं जिन्हे न तो एक दम कम किया जा सकता है और न अधिक । आपकी कोई सबजी चाय आदि उबल रही है तो उसे कम गैस पर नही कर सकते बस बन्द करना होगा या किसी दूसरे चुल्हे पर रखें जो उससे कम बिजली वाला हो। उपार से पूरी हीट आपके मुँह पर लगती है। अपना गैस स्टोव तो है नही कि जरा सा परे सरका दिया, ये भी मुझे बहुत मुश्किल लगता है। मगर ये भारत तो है नही कि अपनी मर्जी से आप जिस तरह की चीज़ चाहिये ले लो। हमे गैस न अच्छी लगे तो स्टोव सही, नही तो अंगीठी है, चुल्हा है, मिट्टी के तेल का स्टोव है मतलव आपके पास बहुत सी आप्शन्ज़ हैं फिर गैस का चुलहा जितना मर्जी कम या अधिक पर चलाओ। हर काम के नियम आपको सडक पर चलना है तो नियम शापिन्ग के लिये जाना है तो नियम । अपनी काम वाली कितनी अच्छी होती है अगर कोई बर्तन अच्छा नही माँजा तो  उस बेचारी को हजार बातें सुना डालते हैं और यहाँ मशीन मे बर्तन मंजते हैं। हमारे भारतिय तडके से जले बरतन बेचारी मशीन के बस मे कहाँ? किसे कहें बस मन मसोस कर खुद ही रगडने पडते हैं । सफाई की छुट्टी ही रहती है। हफ्ते बाद वैक्यूम कलीनर से सफाई होती है वर्ना मैट पर किसी गन्दगी का क्या पता चलता है डुस्ट तो होती नही है। अगर देखा जाये तो यहाँ काम बहुत कम है अधी चीज़ें तो रेडीमेड ही होती हैं सब्जियाँ कटी हुयी ले लो चपाती भी अगर रेडीमेड लेनी है तो वो भी मिलती है मगर भारतिय लोग ताजी ही बनाते हैं। अपना तो भारत मे सारा दिन काम ही खत्म नही होता। बर्तन मशीन मे कपडे मशीन मे । प्रेस करने का झंझट कम सभी लोग यहाँ अइसे कपडे पहनते हैं जिन्हें प्रेस का झंझट न हो।मगर यहाँ की मशीन मे अपने  कपडे तो पोचे ही बन गये हैं।

अब असली बात पर आती हूँ। यहाँ आ कर एक बात का आभास हुया है कि इन काम वालियों ने हम ग्रहणियों को किस कदर बिमार बना डाला है। घर की सफाई और कई काम अब चाह कर भी हम से नही होते जब कि विदेश मे सभी काम खुद करने पडते हैं। कई लोग जो दोनो मियाँ बीवी यहाँ काम करते हैं उन्हें हफ्ते बाद भी अपने घर साफ करने का समय नही मिलता तो भी चलता रहता है। 2-4 माह बाद कभी वैक्यूम कलीनर चला लिया बस। मेरी बेटी को घर साफ रखने की बहुत बडी बीमारी है ओर मै तो कम से कम बीमारी ही कहूँगी जरूरी काम छोड देगी, मगर घर साफ करना नही। उसे पता है मुझ से अब अधिक काम नही होता। खुद उसका आपरेशन हुया है तो कुछ दिन बिस्तर पर लेटना पडा। मुझे डुस्टिन्ग का काम इसलिये मुश्किल लगता कि उसके लिये मुझे स्टेप स्टूल ले कर उपर चढना पडता और मुझे डर रहता कि कहीं गिर न जाऊँ दूसरा मुझे उन पर कहीं डस्ट नजर नही आती तो रहने देती। मगर बेटी को तो जैसे घर ही भूतों का डेरा लगने लगा उसे हर चीज़ अपनी जगह से हिली हुयी दिखाई देती  मुझे तो कुछ कह नही सकती थी और न ही खुद कर सकती थी इस लिये उसने एक काम वाली को बुलाया कि सफाई करनी है। मैने पूछा कि क्या यहाँ काम वाली मिल जाती है तो उसने बताया कि सफाई के लिये मिल जाती है वो पहली बार घर साफ करने का 100 डालर लेती है जिस मे वैक्यूम कलीनर और दुस्टिन्ग आदि तथा बाथरूम सब कुछ बहुत अच्छी तरह साफ करती हैं उसके बाद वो हर 3 हफ्ते बाद आती हैं और तब 60 डालर  एक विजिट के लेती । मुझे हैरानी हुयी मैने कहा इतने पैसे क्यों देने हम खुद साफ कर लेंगे। उसने कहा मम्मी आप एक बार देखना तो सही उनकी सफाई घर नया लगने लगता है। हम या आप जितना भी जोर लगा लें उन जैसा काम नही कर सकते।
बेटी ने मेरे मना करने के बावजूद भी उसे आने के लिये कह दिया। वो चार लोग आये एक माँ और तीन बहने। वो मैक्सीकन थी। यहाँ अधिकतर मैक्सीकन लोग ही सफाई आदि का काम करते हैं। उन्हों ने आते ही अपना अपना मोर्चा सम्भाल लिये एक ने किचन एक बाथरूम और दूसरी शीशे साफ करने लगी। उनकी माँ डुस्टिन्ग करने लगी । अपने हथियार वो साथ ले कर आयी थी
 पता नही कितनी तरह की सोल्यूशन्ज़ थी, टूल थे। सही मे  चार घन्टे मे घर एक दम नया लगने लगा था कहीं किसी दिवार पर या किसी जगह कोई दाग नही था। नातिन ने जगह जगह स्केच पेन से निशान डाल रखे थे सब गायब थे बाथ टुब और बाथरूम की दिवारें चमक रही थी एन्टेरटेनमेन्ट सेन्टर जैसे अभी नया खरीदा हो उसे सपिरिट से साफ किया था हर टेबल खुर्सी सपिरिट से चमका दी थीऔर इस हिसाब से 100 डालर बच्चों के लिये कोई बडी रकम नही थी । कुछ भी हो मै तो एक माह मे भी इतने पैसे अपने काम वाली को न दूँ वो चाहे अपनी जान भी लगा दे। यही तो फर्क है, यहाँ काम के पैसे मिलते हैं हमारे यहाँ कुर्सियाँ तोडने के पैसे मिलते हैं हड्डियाँ तोडने वाले को तो रोटी भी नसीब नहीं। इतने दिनो मे कहीं भी नही लगता कि सफाई की जरूरत है मगर बेटी को लगता है तो कल 3 हफ्ते हो जाने हैं कल वो फिर आयेंगी। इस लिये आज मैने कई सफाई के काम छोड दिये हैं और पोस्ट लिखने बैठ गयी वैसे आज कल बेटी भी काम करने लगी है मुझे तो बच्चों के साथ खेलने का काम होता है या फिर कहीं घूमने जाने का । इस लिये नेट पर नही आ पाती। \ आज बस इतना ही बाकी फिर सही । जल्दी जल्दी मे गलतियों की ओर ध्यान मत दें इसे दोबारा देख नही सकती। हाँ कल का उतसुकता से इन्तजार है यहाँ श्रीमति अजित गुपता जी आ रही हैं और खुशी की बात ये है कि वो स्थान मेरे पास ही है। दो दिन पहले श्री राकेश खन्डेलवाल जी से बात हुयी उन्हें भी मिलूँगी वो भी यहाँ किसी कवि सम्मेलन मे भाग लेने आ रही हैं मै भी सुनने जाऊँगी। भाग नही ले सकती क्यों कि उनका समय और कार्यक्रम पहले ही फिक्स हो चुका है। हाँ उनसे मिल जरूर सकूँगी।




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